June 7, 2025

आज 30 मई को पूरे देश में हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन उस ऐतिहासिक शुरुआत की याद दिलाता है जब 1826 में ‘उदन्त मार्तण्ड’ नामक पहला हिंदी अख़बार प्रकाशित हुआ था। लेकिन आज के इस विशेष अवसर पर पत्रकार अज़हर मालिक ने एक सवाल उठाया है जो पूरे मीडिया जगत को झकझोर रहा है — क्या वाकई पत्रकारिता खत्म हो रही है?

माना जाता है कि पत्रकारिता लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है, लेकिन मौजूदा दौर में यह स्तंभ खुद अस्थिर दिखाई देता है। कभी पत्रकारों की कलम से बदलाव की इबारतें लिखी जाती थीं, आज उस पर ‘वायरल हेडलाइन’ और ‘पेड न्यूज़’ की परछाई मंडरा रही है। जहां एक समय में सच्चाई दिखाना पत्रकार का धर्म हुआ करता था, वहीं आज टीआरपी और विज्ञापन उसकी प्राथमिकता बनते जा रहे हैं।

मीडिया पर से जनता का भरोसा डगमगाने लगा है। आज हर बड़ी खबर पर पहला सवाल यही होता है — “क्या यह सच है या सिर्फ किसी का एजेंडा?” खबरों का मिज़ाज अब बदल चुका है। अब यह नहीं पूछा जाता कि मुद्दा क्या है, बल्कि यह देखा जाता है कि उससे किसको फायदा होगा।

पत्रकार अज़हर मालिक ने इस अवसर पर याद दिलाया कि ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। आज कुछ पत्रकार सरकार के विज्ञापन और दबाव में हैं, कुछ डर में जी रहे हैं और कई फर्जी मुकदमों से परेशान हैं। लेकिन यह दौर अंग्रेजों के शासन में भी आया था। तब भी पत्रकारों की कलम पर पाबंदी थी, फिर भी देश की आज़ादी की क्रांति अख़बारों के ज़रिए ही फैली।

1857 की क्रांति से लेकर 1947 की आज़ादी तक, पत्रकारों की भूमिका अहम रही। बाल गंगाधर तिलक, गणेश शंकर विद्यार्थी, और महात्मा गांधी खुद एक पत्रकार थे जिन्होंने ‘हरिजन’ और ‘यंग इंडिया’ जैसे प्रकाशनों से जनचेतना को जगाया।

1975 में जब इंदिरा गांधी के शासन में देश में आपातकाल लगा, तब मीडिया पर खुलकर सेंसरशिप लागू की गई। कई पत्रकारों को जेल में डाल दिया गया, अख़बारों को खाली पन्ने छापने पड़े। फिर भी कुलदीप नैयर, ललित सूरजन, और रामनाथ गोयनका जैसे लोगों ने अपने फर्ज़ से समझौता नहीं किया।

आज डिजिटल युग में खबरें और तेजी से फैलती हैं, लेकिन उसी तेजी से फेक न्यूज़ भी पनप रही है। हर कोई पत्रकार बन बैठा है, लेकिन ज़िम्मेदारी और सत्य की कसौटी पर बहुत कम लोग खरे उतरते हैं।

अज़हर मालिक का कहना है कि हालांकि हालात खराब हैं, लेकिन अभी सब कुछ खत्म नहीं हुआ है। कुछ पत्रकार आज भी बिना दबाव, बिना डर के जनता की आवाज़ बन रहे हैं। ऐसे पत्रकारों को ही आज के दिन सच्ची श्रद्धांजलि दी जानी चाहिए।

पत्रकार अज़हर मालिक ने अपील की — “आज के दिन हम सबको यह संकल्प लेना होगा कि हम अपनी कलम को बिकने नहीं देंगे। क्योंकि जब तक कलम जिंदा रहेगी, लोकतंत्र जिंदा रहेगा।”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *